क्रिकेट जगत में ऐसे कई क्रिकेटर्स रहे हैं जिनके संघर्ष की कहानियां लगातार सुनने को मिलती रहती हैं. भारतीय टीम का एक वर्ल्ड विजेता गेंदबाज भी हैं, जिसने डेब्यू से पहले काफी संघर्ष किया हैं. दरअसल हम बात करें रहे पूर्व पेसर मुनाफ पटेल (Munaf Patel) की.
पढ़ाई की उम्र में की मज़बूरी

मुनाफ पटेल (Munaf Patel) ने स्कूल जाने की उम्र में गुजरात के भरूच गांव में मजदूरी की थी. पूरे दिन काम करने के बाद उन्हें सिर्फ 35 रूपए मज़बूरी मिलती थी. लेकिन उनकी आँखों में क्रिकेट खेलने का सपना हमेशा से था.

मुनाफ पटेल (Munaf Patel) इस तरफ चाहते थे कि वह देश के लिए क्रिकेट खेले. दूसरी तरफ उनके पिता चाहते थे कि उनका बेटा अफ्रीका देशों में जाकर काम करें और चार पैसे कमाकर लाए. दरअसल उनके चाचा भी अफ्रीका देश में नौकरी थे लेकिन क्रिकेट के प्रति उनकी लगन और जूनून ने उन्हें ऐसा नहीं करने दिया.

बताया जाता हैं कि मुनाफ के स्कूल टीचर को जब पता चला कि वह मजदूरी करने लगे हैं. तब उन्होंने इस क्रिकेटर को कम से कम 12वीं तक की पढ़ाई की सलाह दी थी. मुनाफ की लाइफ में तब एक नया मोड़ आया जब भरूच में युसूफ भाई नाम के एक शख्स ने इस क्रिकेटर की प्रतिभा को पहचाना.

युसूफ भाई ने मुनाफ को वडोदरा जाकर क्रिकेट खेलने की सलाह दी थी. दरअसल उन्होंने ही मुनाफ के लिए सभी चीज का बंदोबस्त भी कर दिया था. उनके पास जूते खरीदने तक के पैसे नहीं थे. फिर युसूफ भाई ने ही उनके लिए जूते खरीदे. अपनी तूफानी स्विंग गेंदों की मदद से मुनाफ ने पहली बार साल 2003 में गुजरात की रणजी ट्रॉफी जीत में जगह बनायीं थी.

रणजी ट्रॉफी खेलने के दौरान किरण मोरे की नजर मुनाफ पटेल पड़ी और वह उन्हें एमआरएफ पेस अकादमी में ले गए. इस दौरान उनकी मुलाकात सचिन तेंदुलकर से हुई और उन्होंने मुनाफ को मुंबई आकर खेलने की सलाह दे डाली.

इसके बाद मुनाफ को इंग्लैंड के खिलाफ बोर्ड प्लेइंग XI में मौका मिला और उन्होंने 10 क्रिकेट लेकर सभी का ध्यान आकर्षित किया. जिसके बाद उन्हें साल 2006 में वनडे क्रिकेट से इंटरनेशनल क्रिकेट में डेब्यू का मौका मिला.