शादी एक एसा बंधन है, जिसमें चाहे दो लोग दूर हो जाए, अलग हो जाए, पर कभी दोनों का पारस्पर सम्बन्ध, दिलों का एक अनोखा रिश्ता कभी खत्म नहीं होता। और इस बात का साक्ष है केरल के नारायणन नम्बीआर और उनकी पहली पत्नी शारदा की कहानी। नारायणन नम्बीआर और शारदा की कहानी केरल के कन्नूर में आजादी की लड़ाई के दौरान बिछड़े एक ऐसे जोड़े की कहानी है, जो 2018 में 72 सालों के बाद मिले।
नारायणन नम्बीआर और शारदा की शादी 1946 के उस दौर में हुई, जब आजादी की लड़ाई पूरे देश में चरम पर थी। कन्नूर में किसानों का ‘कावुम्बई किसान विद्रोह’ चल रह था। उस समय नम्बीआर की आयु 18 वर्ष और शारदा की आयु केवल 13 वर्ष थी। अभी दोनों की शादी को साल भर भी नहीं हुआ था, कि दिसम्बर 30 को नम्बीआर को इस किसान विद्रोह के लिए जाना पड़ा। नम्बीआर, उनके पिता और गाँव के अन्य सभी किसानों ने वहाँ के जमीनदार Karakattidam Naryonar के घर के बाहर जमघट लगा ली। वे लोग रात होते ही उस घर पर हमला करने वाले थे। पर अंग्रेज सरकार ने उनके इरादों का पहले ही अनुमान लगा लिया था और ‘मालाबार इस्पेशल पुलिस’ को कावुम्बई किसान संगठन के लोगों के घेराव के लिए भेज दिया था।
मालाबार इस्पेशल पुलिस और किसानों के बिच चले उस संघर्ष में पांच विद्रोहियों की मृत्यु हो गई और कई घायल हुए। नम्बीआर और उसके पिता किसी तरह उस स्थिति से भागने में सफल हुए और कहीं जाकर छिप गए। इसके बाद एम एस पी ने गाँव के घरों में घुसकर बाकी लोगों को तलाशना शुरू कर दिया। उन्होंने शारदा सहित अन्य घरों की स्त्रियों को भी धमकाया और डराया। इसके बाद पुलिस ने नम्बिआर और उसके पिता को गिरफ्तार कर लिया और जेल भेज दिया।
बहुत समय गुज़र गया पर नम्बीआर की कोई खबर नहीं आई। कुछ वर्षो बाद खबर मिली की कन्नूर से पकड़े गाए विद्रोहियों की गोली मारकर हत्या कर दी गई हैं। ये एक एसा अलगाव था जो किसी तरह के मन मुटाव या लड़ाई झगड़े के कारण नहीं बल्कि किस्मत के कारण हुआ था। शायद शारदा औरत नम्बिआर की किस्मत में अलग होना ही लिखा था। पर जहाँ एक और उनकी किस्मत में अनचाहा अलगाव लिखा था, उसी तरह उनकी किस्मत में वर्षो के बाद आकस्मिक मिलाव भी लिखा था।
एस घटना के बाद एक ओर शारदा का दूसरा विवाह हो गया, वहीं नारायणन ने भी किसी और से विवाह कर लिया। पर 72 वर्षो बाद उनकी भतीजी संथा और उसके भाई ने दोनों को पुनः मिलाने का प्रयास किया। संथा एक लेखिका है, और उनका उपन्यास ’30 दिसम्बर’ युहीं हालात के चलते बिछड़े जोड़े की कहानी है। संथा और उनके भाई ने शारदा के बेटे भारघवन से बातचीत की और शारदा और नारायणन के पुनः मिलन की योजना बनाई। कुछ दिनों की बातचीत के बाद आखिरकार 26 दिसंबर 2018 को शारदा के घर 72 साल पहले बिछड़ा यह जोड़ा फिर मिल गए।
शारदा और नारायणनर के परिवार के मुताबिक यह एक बहुत भावुक मिलन था, जहाँ बातें कम और भावनाएं ज्यादा थी। नारायणन ने जिस प्रकार शारदा के सिर पर हाथ फेरा, वो साफ बता रहा था, कि इस अधूरे रिश्ते में कितनी पुर्णता हैं।
साथ और अलगाव ये सब तो उपरवाले और उसके द्वारा लिखी हमारी किस्मत पर निर्भर है, पर यह भी सत्य है, कितनी भी समस्याओं के बाद जिन्हें मिलना होता है, वे किसी भी तरह मिल ही जाते है। शारदा और नारायणन नम्बीआर की कहानी एक ऐसे रिश्ते की कहानी है, जो अधुरा होकर भी पूरा है और इतना पुराना होकर भी उसमें नवीनता है। ये सुन्दर जोड़ा एक बार मिल लिया, फिर मिले या ना मिले क्या पता। पर इनका ये आपसी सम्बन्ध सदैव इनके दिलों में जीवित रहेगा।