बॉलीवुड इन दिनों देशप्रेम से जुड़ी कहानियां पर्दे पर दिखाने को लेकर काफी रुचि ले रहा है और इसी कॉन्सेप्ट पर आधारित जॉन अब्राहम की अटैक रिलीज हो हो गई है.वैसे तो बहादुर फौजियों और स्पेशल मिशन पर अंडर कवर एजेंट के रूप में, देश के बड़े बड़े दुश्मनों को ठिकाने लगाते आप पहले ही कई सारे सितारों को देख चुके हैं.लेकिन अब जमाना बदल गया है और मार्केट में एक सुपर सोल्जर प्रोग्राम आ गया है. जो कि पूरी तरह से कंप्यूटर या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से संचालित होता हैं. पूरी दुनिया के सभी रक्षा और शस्त्र वैज्ञानिक इन्हें युद्ध का भविष्य कहते हैं. अमेरिका, रूस से लेकर चीन और इजराइल तक हर जगह इन पर काम किया जा रहा है. बता दे हॉलीवुड पर्दे पर ऐसे लड़ाके काफी पहले ही धूम मचा चुके हैं. अब बारी बॉलीवुड इंडस्ट्री की है.जब जॉन अब्राहम को रेस्टोरेंट में 64 रोटियां खाते देख वेटर ने पूछ ली ये बात
थीम यहां पर काफी पुरानी रखी गई है, पर रोबोटिक तकनीक से तैयार किया गया बहादुर फौजी हीरो का यह अंदाज जरा नया सा है. यहां कैमरावर्क और तकनीक को काफी मजबूत रखा गया है. इस फिल्म की पूरी जान भी हैं.खैर स्क्रिप्ट पर एक अलग सोच से ही काम किया जा सकता है, किरदारों पर मेहनत करनी होती है पर एडिटर को अपना दिल कड़ा करके जैकलीन फर्नांडिस (Jacqueline Fernandez) के अनावश्यक दृश्यों को जरूर कट करना चाहिए था , तो आज न सिर्फ फिल्म की लंबाई कम हो जाती बल्कि कहानी अपने थीम से भटकने से भी बच जाती.
अटैक की कहानी को बताया जाय तो उरी टाइप के एक सैन्य ऑपरेशन में जॉन अब्राहम अपनी टुकड़ी के साथ आतंकियों के ठिकाने में घुस कर मारने जाते हैं.वहां पर दर्जनों आतंकियों को मार भी गिराते हैं और उनके मुख्य सरगना को गिरफ्तार भी कर लेते हैं. पर एक किशोरवय लड़के पर दया दिखा कर, उसे छोड़ देते हैं. वही लड़का जवान होकर (इलहाम एहसास) भारत की संसद पर हमला कर देता है. अपनी ताकत से तीन सौ से ज्यादा सांसदों और प्रधानमंत्री को बंधक बना लेता है. भारत सरकार से अपनी हर शर्त मनवाने लगता है. क्या जॉन अब्राहम संसद, सांसदों और पीएम को बचाते हुए अपने सभी दुश्मन को ठिकाने लगा पाएंगे.
खैर हमारे द्वारा बिना बताए भी आप इस सवाल का जवाब अपने अनुभव से जान ही सकते हैं.अटैक की कहानी को और भी मसालेदार बनाने के लिए राइटर-डायरेक्टर लक्ष्य राज आनंद द्वारा जॉन अब्राहम की लव स्टोरी को रिपीट मोड में डाल कर फिल्म की कहानी और भी कमजोर कर दिया . अभिनेत्री जैकलीन का बार-बार जॉन के सपने में और पर्दे पर आना फिल्म में कुछ भी नया नहीं जोड़ पता. खैर फिल्म के रोमांटिक ट्रेक को डायरेक्टर रोबोटिक साइंटिस्ट के रूप में सबा (रकुल प्रीत) के साथ भी जोड़ सकता था . अभिनेत्री रकुल की पूरी प्रतिभा और किरदार का लेखकों तथा निर्देशक और बिल्कुल भी सही से इस्तेमाल नहीं किया .खैर फिल्म के अंत में यह भी संकेत दिए गए है कि जल्द ही इसका पार्ट-2 भी आएगा. यानी जॉन एक बार फिर से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से संचालित फौजी बनकर पर्दे पर लौटेंगे
फिल्म अटैक के पहले पार्ट की जान इसके ऐक्शन सीन और वीएफएक्स को ही माना जा रहा हैं. पर फिल्म के दृश्यों की ऐसी कोरियोग्राफी आप हॉलीवुड फिल्मों में काफी पहले ही देख चुके हैं और जो आपको ज्यादा चौंकाता नहीं है. संसद के भीतरी दृश्य भी काफी औसत रखे गए हैं. फिल्म में सांसद को भेड़ों के झुंड जैसे दिखाया गया है हैं और उनके हिस्से में एक भी संवाद नहीं रखा गया है.द कश्मीर फाइल्स फिल्म पर सवाल पूछें जाने पर भड़के जॉन अब्राहम
फिल्म में संसद के भीतर आतंकियों के घुस जाने, भीषण हमले और नरसंहार जैसी पूरी भयानक घटना का असर पैदा करने वाले मीडिया के दृश्य यहां पर काफी ज्यादा कमजोर रखे गए हैं. जनता तो इस मामले में बिल्कुल भी नजर नहीं आती. कुल मिलाकर अटैक एक तरह को औसत फिल्म ही साबित होती है, जिसकी स्क्रिप्ट में किरदार बिल्कुल भी निखर कर नहीं आ पाते. यह फिल्म जॉन अब्राहम के फैन्स के साथ ही साथ un लोगों को काफी पसंद आएगी, जो वीडियो गेमिंग करना काफी पसंद करते है।