ओडिशा में एक डिस्टिलरी कंपनी के मालिक और कांग्रेस के राज्यसभा सांसद Dheeraj Sahu के ठिकानों पर बुधवार 6 दिसंबर को इनकम टैक्स अधिकारियों द्वारा छापेमारी की गई थी। विशेष कर ओडिशा बंगाल और झारखंड में की गई इस छापेमारी में आयकर विभाग द्वारा अब तक 350 करोड रुपए की भारी भरकम नकदी बरामद की गई। चार दिन पहले हुई छापे मारी के बावजूद लगभग तीन दर्जन नोट गिनने की मशीनों की सहायता से यह काउंटिंग लगातार चल रही है, लेकिन अब तक पूरी नहीं हो सकी है।
अधिकारियों का कहना है कि यह किसी भी एजेंसी की तरफ से एक ही ऑपरेशन में काला धन की अब तक की सबसे बड़ी बारामदगी होगी। इस समय सबके मन में बस एक ही सवाल उठ रहा है, कि आखिर यह धन आरोपी को वापस लौटा दिया जाएगा या फिर इसे सरकारी खजाने में जमा कराया जाएगा। आज इस आर्टिकल में हम आपको आयकर या ईडी की छापेमारी में जब्त भारी कैश और उन पैसों की कहानी के बारे में विस्तार से बताते हैं।
कौन कर सकता है कार्यवाही?
सबसे पहला प्रश्न यही उठता है कि देश में मिले अवैध या काले धन के खिलाफ सबसे पहले कौन सी एजेंसी द्वारा कार्यवाही की जा सकती है। जी हां इस कड़ी में तीन नाम शामिल है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और आयकर विभाग (आईटी) यह तीनों ऐसी एजेंसियां है जो भारत सरकार के अधीन है। जो किसी भी आशंका या पुख्ता जानकारी पर किसी भी व्यक्ति के घर या उसके अन्य ठिकानों पर अचानक छापेमारी कर सकती हैं। इसमें राज्य सरकार की किसी प्रकार की कोई भूमिका नहीं होती है
कहां रखा जाता है धन
जब किसी भी आरोपी के घर पर छापा मारने के दौरान सीबीआई, ईडी या फिर आईटी में से कहीं भी कोई भी नकदी पकड़ती है, तो वह सबसे पहले उस आरोपी से उसकी आय के स्रोत के बारे में बात करती है, लेकिन जब आरोपी के द्वारा उस बात का संतोषजनक जवाब नहीं दिया जा सकता, तो फिर इस नकदी को मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम कानून के अंतर्गत काला धन मान लिया जाता है। इसी जगह से नकदी को जप्त करने की कार्रवाई की शुरुआत हो जाती है। इसके बाद एजेंसी द्वारा अपने नजदीकी स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया को बुलाया जाता है, और जब्त नकदी की पूरी डिटेल रिपोर्ट भी बनाई जाती है। बैंक की तरफ से नोटों की गिनती की प्रक्रिया शुरू की जाती है। गिनती पूरी होने के बाद निष्पक्ष गवाहों की उपस्थिति के दौरान नोटों को पेटी में भरकर सील किया जाता है। फिर इसको सीबीआई शाखा ले जाया जाता है। वहां उस पूरी धनराशि को एजेंसी के पर्सनल डिपॉजिट अकाउंट मैं जमा कराया जाता है। उसके बाद यह रकम केंद्र सरकार के खाते में जमा कराई जाती है।
नकदी का इस्तेमाल?
किसी भी एजेंसी की छापे मारी मात्र से किसी भी व्यक्ति को दोषी करार नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह पूरा मामला कोर्ट में चलता है। जब तक कोर्ट में यह केस पेंडिंग रहता है, तब तक किसी के द्वारा इस धनराशि का कोई इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। कोर्ट द्वारा किसी व्यक्ति को आरोपी करार दिए जाने के बाद जब्त नकदी और कीमती चीजें सभी सरकारी संपत्ति हो जाती हैं, और जब वह आरोपी केस से बरी हो जाता है, तो आरोपी को यह समस्त धनराशि लौटा दी जाती है।
पेनाल्टी देकर धनराशि ले सकते हैं वापस
आयकर नियम के बारे में स्पष्ट रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता। अगर हम इस पूरे मामले को विस्तार से समझाना चाहते हैं, तो फिर हमें 23 दिसंबर 2021 को उन्नाव के इत्र कारोबारी पीयूष जैन के यहां हुई छापेमारी और उसमें जब्त 196 करोड रुपए की नकदी और अरबो रुपए के सोने के बारे में चर्चा करनी होगी। मिली रिपोर्ट के मुताबिक इस मामले में पीयूष जैन जमानत पर रिहा हो गए हैं और जेल से बाहर आ चुके हैं। लेकिन अब तक उन्हें किसी प्रकार की कोई धनराशि वापस नहीं मिली है। रिपोर्ट के मुताबिक छापेमारी के कुछ दिन बाद ही पीयूष द्वारा पेनाल्टी जमा कराने की इच्छा व्यक्त की गई थी, जिसके चलते वह 52 करोड रुपए पेनाल्टी भरने के लिए भी तैयार हो गए थे, लेकिन जीएसीट इंटेलिजेंस महानिदेशालय द्वारा इसे खारिज कर दिया गया था।
24 मई 2023 की एक रिपोर्ट के अनुसार पीयूष जैन के ठिकानों से 196 करोड रुपए की नकदी और 23 किलो सोना बरामद किया गया था, जिस पर जीएसटी इंटेलिजेंस महानिदेशालय द्वारा 497 करोड रुपए का जुर्माना लगाया गया है। यह पूरा मामला अब तक अदालत में चल रहा है और पैसे एसबीआई बैंक में जमा किए गए हैं।
आरोपी छापेमारी के बाद कर सकता है यह काम
अगर किसी भी आरोपी को ऐसा प्रतीत होता है, कि उसका तो आर्थिक रिकॉर्ड बेहद साफ सुथरा है। उसके यहां यह छापेमारी गलत तरीके से की गई है। उसके रिकॉर्ड में किसी प्रकार की कोई गड़बड़ी नहीं है, तो वह पूरे मामले को सीधे हाई कोर्ट मे पेश कर सकता है। इसके अतिरिक्त वह आयकर अपील कमिश्नर के पास भी अर्जी लगाकर अपने मामले की शिकायत कर सकता है। जिसमें छापेमारी को चुनौती देने के साथ-साथ आयकर विभाग द्वारा उसकी संपत्ति के असेस्मेंट पर भी सवाल किए जा सकते हैं। इसके आधार पर आयकर विभाग को यह बात स्पष्ट करनी होगी कि आखिर उसने संपत्ति की गणना कौन से हिसाब से की है।
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