Mahabharat Karna : महाभारत का युद्ध में कौरवों और पांडवों के बीच हुआ था हालाँकि इस युद्ध में कौरव और पांडवों के आलावा भी कई महान योद्धाओं ने हिस्सा लिया हैं. जिसके एक सबसे बड़ा नाम सूर्यपुत्र कर्ण भी हैं. उन्होंने कौरव की सेना की तरफ से युद्ध लड़ा था.
बता दे कर्ण पांडवों के ही बड़े भाई हैं और उनका जन्म कुंती और महराज पान्डु की शादी से पहले सूर्यदेव के आशीर्वाद से हुआ था. लेकिन माता कुंती ने लोकलाज के डर से कर्ण को नदी में बहा दिया था.
कर्ण के बारे में बताया जाता हैं कि वह अर्जुन की तरह की धनुधारी थे हालंकि महाभारत के युद्ध में कर्ण का अर्जुन के हाथों वध हो गया था. सबसे दिलचस्प बात ये हैं कि उनके वध का कारण कर्ण का दानवीर होना था.
भगवान सूर्यदेव के अवतार थे कर्ण (Mahabharat Karna)
सभी जानते हैं कि कर्ण भगवान सूर्यदेव के अवतार थे और उन्हें जन्म के साथ से ही भगवान सूर्यदेव ने कवच-कुंडल दे रखे थे. जिन्हें भेदना असंभव था. इस कारण कर्ण अजय थे. कई लोग ये सोच रहे होंगे कि जब कर्ण अजय से थे तो अर्जुन ने उन्हें कैसे मार दिया?. आज इस लेख में हम इस सवाल का जवाब भी देंगे.
बता दे महाभारत के युद्ध के दौरान अगर कर्ण के पास कवच-कुंडल होते तो उन्हें अर्जुन या कोई भी नहीं मार सकता था और ये बात भगवान श्रीकृष्ण भी जानते थे. जिसके कारण उन्होंने एक चाल चली थी.
बताया जाता है कि कृष्ण के कहने पर अर्जुन के दैविक पिता भगवान इंद्र ने ब्राहमण के भेष में जाकर कर्ण से कवच-कुंडल मांग लिए थे. कर्ण के बारे में बताया जाता हैं कि उनसे जब भी कोई चीज़ मांगी जाती थी तो वह मना नहीं करते थे ऐसे में उन्होने अपने कवच-कुंडल भी दान कर दिए थे.
कर्ण ये जानते थे कि अगर वह अपने कवच-कुंडल दे देंगे तो उनकी मौत जाएगी. इसके बावजूद उन्होंने दान में अपने कवच-कुंडल दे दिए थे. जोकि उनकी दानवीरता का सबसे बड़ा उदाहरण हैं. इसके बाद ये कवच-कुंडल कहाँ गए. इसका जवाब कई बार लोग जानना चाहते थे लेकिन इसका जवाब नहीं मिल पाता हैं. आज इस लेख में हम इसी सवाल का जवाब देंगे.
कहाँ हैं कर्ण के कवच-कुंडल?
कर्ण से लेकर इंद्र ने कवच-कुंडल कहाँ रखे थे. इसे लेकर कई कहानियां सुनने को मिलती हैं. कुछ लोगों का मानना हैं कि कर्ण के कवच-कुंडल हिमालय की किसी गुफा में रखे गए हैं. जहाँ इंसान का पहुंचना असंभव हैं.
इसके आलावा एक सबसे प्रसिद्ध मान्यता ये हैं कि ओडिशा के पुरी धाम के करीब कोणार्क को लेकर हैं. जहाँ विश्व प्रसिद्ध सूर्य मंदिर भी मौजूद हैं. मान्यता के अनुसार कर्ण के कवच-कुंडल वहीँ छुपाए गए हैं.
कहा जाता हैं कि इंद्र ने छल द्वारा कर्ण से कवच-कुंडल लिए थे ऐसे में वह स्वर्ग नहीं जा सकते थे ऐसे में उन्होंने कोणार्क में ही इन्हें छुपा दिया था और माना ये भी जाता हैं कि इन कवच-कुंडल की रक्षा भगवान सूर्यदेव और समुन्द्र देव करते हैं.
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