‘साधु-बाबा पैसे ना देने पर श्राप देने लगें तो क्या करें’ जानिए क्या कहते हैं प्रेमानंद जी महाराज

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प्रेमानंद महाराज ने हाल ही में साधु-संतों द्वारा पैसे मांगने की स्थिति पर अपने विचार साझा किए हैं। उनका कहना है कि जब भी कोई साधु आपके घर आए और पैसे मांगे, तो आपको क्या करना चाहिए, यह जानना महत्वपूर्ण है। यहाँ हम इस विषय पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

साधु-संतों का आदर और सेवा

प्रेमानंद

भारत की संस्कृति में साधु-संतों का बहुत सम्मान किया जाता है। जब कोई साधु आपके द्वार पर आता है, तो उसे उचित सम्मान देना चाहिए। प्रेमानंद महाराज का मानना है कि साधुओं का स्वागत भारतीय परंपरा के अनुसार करना चाहिए। यदि वे भोजन की मांग करते हैं, तो उन्हें प्रेमपूर्वक भोजन कराना चाहिए। लेकिन अगर वे पैसे मांगते हैं, तो यह एक अलग स्थिति होती है।

पैसे मांगने की स्थिति

प्रेमानंद महाराज ने स्पष्ट किया कि यदि कोई साधु आपसे पैसे मांगता है, तो आपको विनम्रता से मना करना चाहिए। आप उनसे कह सकते हैं कि “मैं आपको भोजन करा सकता हूँ या पानी पिला सकता हूँ, लेकिन पैसे देने में मेरी श्रद्धा नहीं है और न ही मेरा सामर्थ्य।” इस प्रकार की स्पष्टता से न केवल आप अपनी स्थिति को स्पष्ट करते हैं, बल्कि साधु का भी सम्मान बनाए रखते हैं।

श्राप का डर

कई लोग इस डर से पैसे देने में संकोच करते हैं कि यदि वे साधु को पैसे नहीं देंगे, तो वह उन्हें श्राप दे सकता है। प्रेमानंद महाराज ने इस डर को पूरी तरह से खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि यदि कोई साधु आपको श्राप देता है, तो उसका प्रभाव नहीं होगा। ऐसा करने वाला साधु स्वयं भौतिक लालच और मोह-माया में फंसा हुआ होता है। उन्होंने कहा, “आपने उस साधु के प्रति मधुर वचन कहे हैं और उन्हें जल तथा भोजन दिया है; यह काफी है।”

सही आचरण

प्रेमानंद महाराज ने यह भी बताया कि पैसे मांगने वाले साधुओं के व्यवहार से डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। ऐसे संत जो केवल दान या पैसे के लिए आते हैं, वे वास्तव में अपने कल्याण के लिए नहीं सोचते। उन्होंने कहा कि “पैसे मांगने की बात कहीं भी किसी शास्त्र में वर्णित नहीं है।” इसलिए, ऐसे व्यक्तियों से डरने की बजाय आपको अपनी श्रद्धा और विश्वास को बनाए रखना चाहिए।

इस प्रकार, प्रेमानंद महाराज ने हमें यह सिखाया कि हमें अपने मूल्यों और श्रद्धा को बनाए रखते हुए साधुओं का सम्मान करना चाहिए। यदि कोई साधु पैसे मांगता है, तो हमें विनम्रता से मना करना चाहिए और अपने आत्म-सम्मान को बनाए रखना चाहिए।

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