पुरानी कहावत हैं अगर आप किसी चीज को पाने से शिद्दत से मेहनत करे तो वो चीज आपको जरुर मिलती हैं. ये कहावत उत्तर प्रदेश के 22 वर्षीय कुलदीप कुमार पर एक फिट बैठती हैं. इस युवा खिलाड़ी ने अपनी प्रतिभा और जूनून के कारण वो मुकाम हासिल कर लिया हैं, जिसके वह सपने देखा करता था.
250 रूपए दिहाड़ी पर ईंट के भट्टे पर मजदूरी करना वाला ये खिलाड़ी अब जल्द ही यूपी के लिए रणजी ट्रॉफी खेलता हुआ नजर आएगा. जसप्रीत बुमराह को अपना आइडल मानने वाला इस खिलाड़ी का यहाँ तक का सफ़र आसान नहीं रहा हैं.गरीबी को हराकर भारतीय टीम के ये 7 क्रिकेटर बने सुपरस्टार
गरीबी ने छीन ली पिता की जान
कोरोना महामारी के दौरान गरीबी के कारण कुलदीप कुमार के पिता का निधन हो गया था. इस पर बात करते हुए उन्होंने बताया था, कि “मैं ईंटें सेंकता था और उन्हें एक हाथ से खींचने वाली गाड़ी में ले जाता था. मेरा बचपन मजदूरी में ही बीता हैं. हमारे परिवार की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी.”
कुलदीप ने आगे बताया, “क्रिकेटर बनना तो छोड़ दीजिए मैं जरुरत के सामान के आभाव के चलते अपने पिता को नहीं बचा पाया. मेरे पिता कैंसर के मरीज थे और फिर उन्हें कोरोना वायरस ने जकड़ लिया. जिसके चलते हम उन्हें बचा नहीं पाए.”5 ऐसे खिलाड़ी जिन्होंने बेहद ग़रीबी से लड़कर क्रिकेट में बड़ा मुक़ाम हासिल किया
कुलदीप यादव ने बताया कि वह मजूदरी करने के बाद अभ्यास करते हैं. “मैं ही नहीं बल्कि मेरा बड़ा भाई भी एक मजदूर है, मेरा छोटा एक भाई हैं जो स्कूल में पढ़ाई कर रहा हैं. बचपन से ही मुझे क्रिकेट में रूचि रही हैं लेकिन मैं ये नहीं जानता था कि शुरुआत कैसे करनी हैं. मैं पूरे दिन में ईंट भट्ठे पर तपकर काम किया करता था और शाम होते ही अपने गांव के नजदीक मैपल अकैडमी के एक ट्रेनिंग सेंटर में प्रैक्टिस करता था. कई सालों की मेहनत के बाद अब मेहनत रंग लाई हैं और मेरा रणजी ट्रॉफी के लिए सिलेक्शन हो गया है. मैं सच में उत्तर प्रदेश क्रिकेट संघ (यूपीसीए) का शुक्रगुजार हूँ.”
अपने चयन पर ख़ुशी जाहिर करते हुए कुलदीप कुमार ने बताया, कि “मैंने अक्सर ये सुना था कि सिर्फ अमीर और साधन संपन्न लोगों का ही टीम में चयन होता है, लेकिन मुझे अपनी प्रतिभा के दम पर तीसरी कोशिश के बाद टीम में चुना गया. फिलहाल तो मैं 130-135 किमी/घंटा की गति से गेंदबाजी कर रहा हूं. लेकिन जल्द ही मैं 150 किमी/घंटा की गति को छूना चाहता हूँ.”