उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की शानदार जीत हुई है और योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के फिर से मुख्यमंत्री बन चुके है. हिंदुत्व की भावना के लिए एक ‘पोस्टर बॉय’, भगवा वस्त्र पहनने वाले आदित्यनाथ को एक दम तेजतर्रार नेता माना जाता है.
एक बार फिर योगी के सिर सज गया है मुख्यमंत्री का ताज
विधानसभा चुनावों के नतीजे भारतीय जनता पार्टी की उम्मीदों के मुताबिक आए हैं और एक बार फिर मुख्यमंत्री बनना लगभग तय ही माना जा रहा है. विश्लेषकों के मुताबिक उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की पूर्ण बहुमत की जीत ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सियासी कद को अब एक दम से काफी ज्यादा बड़ा कर दिया गया है.जानिए फिल्मों से राजनीति में आए उत्तरप्रदेश के इन 7 नेताओं में किसके पास है कितनी संपत्ति
योगी ने यह मिथक तोड़ भी दिया कि जो कोई मुख्यमंत्री नोएडा चला जाता है उसकी कुर्सी भी चली जाती है और कई बार नोएडा चले जाने के बावजूद वह उत्तर प्रदेश में लगातार पिछले पांच वर्ष से मुख्यमंत्री बने हुए हैं.
उत्तराखंड के गढ़वाली क्षत्रिय परिवार में हुआ था योगी का जन्म
योगी आदित्यनाथ के संन्यासी हो जाने से पहले के जीवन पर अगर नजर डाली जाए तो पांच जून 1972 को पड़ोसी राज्य उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में यमकेश्वर तहसील के पंचुर गांव के एक गढ़वाली क्षत्रिय परिवार में उन्होंने जन्म लिया था. रिपोर्ट के मुताबिक योगी के पिता का नाम आनन्द सिंह बिष्ट जी था. अपने माता-पिता के सभी सात बच्चों में योगी शुरू से ही सबसे ज्यादा तेज और तर्रार थे. बचपन में उनका नाम अजय सिंह बिष्ट बताया जाता था.
जानकार यह तक बताते हैं कि स्नातक की पढ़ाई करते हुए योगी 1990 में ही बह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ गए थे और 1992 में उनके द्वारा हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय से बीएससी किया गया था. राम मंदिर आंदोलन के दौर में उनका रुझान आंदोलन की ओर हो गया था और इसी बीच वह गुरु गोरखनाथ पर शोध करने के लिए वर्ष 1993 में गोरखपुर चले गए थे.
एक संन्यासी बनने की राह पर चले योगी
गोरखपुर में वह 1994 में योगी पूर्ण रूप से संन्यासी हो गये. योगी को महंत अवैद्यनाथ द्वारा अपना उत्तराधिकारी घोषित किया गया और दीक्षा लेने के बाद अजय सिंह बिष्ट योगी आदित्यनाथ जी हो गये थे. 12 सितंबर 2014 को महंत अवैद्यनाथ के ब्रह्मलीन हो जाने के बाद योगी गोरक्षपीठ के महंत घोषित किये गये थे.
मात्र 26 वर्ष की उम्र में पहली बार बन चुके है सांसद
योगी आदित्यनाथ गोरक्षपीठ की विरासत को आगे बढ़ाते हुए 1998 में ही महज 26 वर्ष की उम्र में पहली बार गोरखपुर से भाजपा के सांसद बन गए थे और लगातार पांच बार उनकी जीत का सिलसिला बना रहा था. मार्च 2017 में ही लखनऊ में भाजपा विधायक दल की बैठक में योगी को विधायक दल का नेता चुना गया था.
इसके बाद योगी द्वारा लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया गया था और वह विधान परिषद के सदस्य बने थे और 19 मार्च 2017 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. मुख्यमंत्री के रूप में, उन्होंने ऐसे फैसले भी लिए थे जिनसे हिंदुत्व के ‘चेहरे’ के रूप में उनकी छवि की काफी ज्यादा पुष्टि हुई थी. अपने कार्यकाल की शुरुआत में, उन्होंने अवैध बूचड़खानों पर एक दम प्रतिबंध लगा दिया था और पुलिस द्वारागोहत्या पर नकेल कस दी गई थी.यूपी की राजनीति के 5 दिग्गज जिन्होंने दो या उससे अधिक शादी की
राजनीतिक विश्लेषकों का तो यह तक कहना है कि इससे योगी आदित्यनाथ का कद अब और भी बढ़ चुका है. इसके पहले साल 1985 में लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत से कांग्रेस पार्टी द्वारा सरकार बनाई गई थी. यह भी माना जाता है कि योगी द्वारा मौजूदा विधानसभा चुनाव में 80 बनाम 20 प्रतिशत का नारा देकर वोटों के ध्रुवीकरण की पहल भी की गई थी. विश्लेषकों द्वारा 20 प्रतिशत को मुस्लिम आबादी और 80 प्रतिशत को हिंदू आबादी के रूप में देखा गया था.
चुनाव में एक दम छाया रहा ‘योगी का बुलडोजर’
इसके अलावा योगी द्वारा माफिया और अपराधियों के खिलाफ की गई कार्रवाई को भी पूरे चुनाव में काफी बड़े मुद्दा बनाया गया था. भाजपा के शीर्ष नेताओं के चुनाव प्रचार में ‘योगी का बुलडोजर’ छाया रहा था. सपा प्रमुख अखिलेश यादव द्वारा भी अक्सर अपनी सभाओं में बुलडोजर और बुल (सांड) का नाम लेकर योगी पर खूब तंज कसे गए थे. यादव ने चुनाव द्वारा छुट्टा पशुओं पर नियंत्रण न लगा पाने को अपना मुद्दा बना दिया गया था. विपक्षी दल योगी द्वारा अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने का भी खूब आरोप लगाते रहे हैं, लेकिन आदित्यनाथ द्वारा आरोप को खारिज करते हुए कहा गया था कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मूल मंत्र “सबका साथ सबका विकास” का एक दम पालन करते हैं.
हालांकि उनके द्वारा यह भी दावा किया जा रहा है कि विकास तो सबका होगा लेकिन किसी भी वर्ग का बिल्कुल भी तुष्टिकरण नहीं किया जाएगा. योगी आदित्यनाथ द्वारा करीब करीब ढाई दशक के अपने राजनीतिक जीवन में पहली बार गोरखपुर से ही विधानसभा का चुनाव लड़ा गया था. हालांकि उनके गोरखपुर उम्मीदवार घोषित होने से पहले अयोध्या और मथुरा से भी उनके मैदान में उतरने की अटकलें लगाई गईं थीं।