न्यायलय द्वारा सुनाए जाने वाला फैसला हमारे देश में सर्वप्रिय हैं. लेकिन कई बार जज भी कुछ ऐसे फैसले कर देते हैं, जो काफी शर्मिंदा कर देते हैं. हाल ही में जस्टिस पुष्पा विरेंद्र गनेदीवाला ने एक ऐसा फैसला सुनाया जोकि काफी हैरानी वाला हैं. दरअसल ये जज साहिबा अपने विवादित फैसलों के कारण हमेशा चर्चा में बनी रहती हैं.
जस्टिस गनेदीवाला 2019 में हाई कोर्ट की जज बनी और फ़िलहाल वह नागपुर बेंच में कार्यरत है. मैडम ने बच्चों से यौन शोषण अपराध से सम्बंधित पॉस्को कानून की व्याख्या करते हुए जो कमेंट किया उस पर बड़ा बवाल मच गया था. सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में यौन उत्पीड़न के मुद्दों पर उनके विवादास्पद फैसले को देखते हुए जस्टिस पुष्पा विरेंद्र गनेदीवाला को मुंबई उच्च न्यायालय का स्थाई न्यायाधीश बनाने की अपनी सिफारिश को कथित रूप से वापसी लेने का फैसला किया हैं.
19 जनवरी 2021 को मुंबई हाईकोर्ट की बेंच में जज पुष्पा की अध्यक्षता एक वाली अदालत में 4 वर्ष पुराने एक केस पर सुनवाई हो रही थी. तबी उन्होंने इस फैसला को सुनाते हुए कहा कि स्किन-टू-स्किन स्पर्श हुए बिना कपड़ों के ऊपर से नाबालिग पीड़िता को स्पर्श करना पॉस्को कानून या यौन अपराधों पर संरक्षण कानून के अंतर्गत यौन उत्पीडन नहीं माना जा सकता.
जज साहिबा ने अजीबोगरीब फैसला सुनने के दौरान कहा कि क्योंकि पीड़ित उस दौरान कपड़ों में थी इसलिए आरोपी और उसका स्किन-टू-स्किन संपर्क नहीं हुआ और ऐसे में इसे यौन उत्पीडन या सेक्सुअल असॉल्ट नहीं माना जा सकता. जज मैडम का यह निर्णय इन दिनों चर्चा में बना हुआ हैं.
पैंट की जीप खोलना यौन शोषण नहीं
जस्टिस गनेदीवाला के लिए इस तरह का अजीबोगरीब फैसला सुनाना कोई नई बात नहीं हैं. इससे पहले भी उनकी अध्यक्षता में मुंबई हाईकोर्ट की नागपुर बेंच की एकल पीठ ने भी एक हैरान करने वाला फैसला दिया था, फैसले में कहा गया था कि किसी लड़की का हाथ पकड़ना और आरोपित का पैंट की चैन खोलना प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेज एक्ट 2012 के अंतर्गत यौन उत्पीडन की श्रेणी में नहीं आता है.
हालाँकि इसी केस में लड़की की मां ने शिकायत दर्ज कराई थी. जिसमे उन्होंने कहा था कि आरोपित की पैंट की चैन खुली हुई थी और उसकी बेटी के हाथ उसके हाथ में थे. मां ने यह भी दावा किया था कि उनकी बेटी ने बताया कि आरोपित उसे सोने के लिए बेड पर आने का भी दवाब बनाया था, हालाँकि इस मामले में फैसले के दौरान कहा गया मुंबई हाईकोर्ट की नागपुर बेंच का फैसला काफी शर्मनाक है.