बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता दिलीप कुमार ने अपनी जबरदस्त एक्टिंग से कई दशकों तक इंडस्ट्री पर राज किया है. अभिनेता ने साल 1944 में फिल्म ‘ज्वार भाटा’ से हिंदी सिनेमा में डेब्यू किया था. जिसके बाद उन्होंने इंडस्ट्री को कई हिट फ़िल्में दी. बताया जाता हैं कि दिलीप साहब मशहूर सिंगर लता मंगेशकर को अपनी छोटी बहन मानते थे. यहाँ तक कि लता उन्हें राखी भी बा बांधती थी. लेकिन एक वक़्त ऐसे भी आया था, जब दोनों के बीच करीब 13 सालों तक बातचीत बंद रही थी.
पिंकविला की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1957 में रिलीज हुई फिल्म ‘मुसाफिर’ के गाने ‘लागी नाहीं छूटे’ को गाने के लिए सलिल चौधरी ने दिलीप कुमार को चुना था. हालाँकि फिमेल सिंगर लता इस बात से बेखबर थी. जब उन्हें इसके बारे में पता चला तो वह सोचने लगी कि आखिर दिलीप कुमार गाना कैसे गाएंगे?
लागी छूटे ना गाने को को सलिल चौधरी ने कंपोज किया था, जिसमें उन्होंने राग पीलू में ठुमरी को चुना था. दूसरी ओर दिलीप ने सितार के साथ इस धुन का अच्छे से रियाज किया, हालाँकि रिकॉर्डिंग के दौरान दिलीप साहब कतराने लगे, क्योंकि उन्हें लता के साथ गाना गाने में घबराहट हो रही थी. दिलीप की घबराहट भगाने के लिए सलिल ने उन्हें ब्रांडी का एक छोटा सा पेग दे दिया.
ब्रांडी पीने के बाद भी दिलीप ने लता मंगेशकर के साथ गाना तो गाया, हालाँकि रिकॉर्डिंग में उनकी आवाज में दम दिखाई नहीं दिया. दूसरी ओर लता ने रिकॉर्डिंग में अपना पूरा योगदान दिया. इसी रिकॉर्डिंग के बाद से ही दोनों के बीच खटास शुरू हो गई थी, जो कि लगभग 13 वर्षों तक रही. लेकिन साल 1970 में दोनों के बीच सभी मनमुटाव खत्म हो गए और लता दिलीप कुमार को राखी बाँधने लगी.
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मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस रिकॉर्डिंग से पहले भी लता दिलीप के एक कमेंट से नाराज थी. दरअसल एक बार दिलीप ने लता को देखकर कहा था कि मराठियों की उर्दू बिल्कुल दाल-चावल की तरह होती है. दिलीप साहब की इस बात ने लता को काफी दुःख पहुंचाया था. जिसके बाद उन्होंने उर्दू सिखने तक का फैसला कर लिया था.