Indian Railway Token Exchange: इंडियन रेलवे दुनिया का सबसे बड़ा रेल नेटवर्क हैं. दरअसल दुनिया के कई देशों की आबादी से ज्यादा लोग इंडियन रेलवे में काम करते हैं. आज़ादी के बाद से इसमें अब तक इसकी कई बार रूपरेखा भी बदली हैं. दरअसल समय के साथ-साथ अब तक भारतीय रेलवे में कई क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को मिल चुके हैं लेकिन आज भी देश के कई इलाकें ऐसे हैं जहां आज अभी अंग्रेजों के ज़माने के तकनीक का इस्तेमाल किया जाता हैं. ऐसा ही एक बेहद सिस्टम ‘टोकन एक्सचेंज’ का तरीका हैं.
कुछ दशकों पहले तक टोकन एक्सचेंज तकनीक का इस्तेमाल काफी किया जाता था लेकिन अब ये धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा हैं. देश के सिर्फ कुछ ही इलाको में अब इस तकनीक का प्रयोग किया जा रहा हैं. आज इस लेख में हम आपको टोकन एक्सचेंज तकनीक के बारे में बताने जा रहे हैं और ये भी जानेगे कि कैसे इसका मुख्य मकसद ट्रेन को एक जगह से दूसरी जगह सुरक्षित पहुंचाना था. ALSO READ :रेलवे स्टेशन की तरह दीखता हैं राजस्थान का यह सरकारी स्कूल, फोटोज हो रही हैं वायरल
क्या हैं टोकन एक्सचेंज? (Indian Railway Token Exchange)
बता दे अंग्रेजों के जामने में ट्रैक सर्किट नहीं हुआ करता था. ऐसे में टोकन एक्सचेंज की मदद से ट्रेन को एक जगह से दूसरी तरह सुरक्षित पहुंचाया जाता था. आज से लगभग 4-5 दशक पहले रेलवे ट्रैक काफी छोटे हुआ करते थे. यही कारण हैं कि ऐसे कई जगह थी जहां एक ही ट्रैक पर आने और जाने वाली दोनों ट्रेने चला करती थी. ऐसे में टोकन एक्सचेंज एक ट्रेन को दूसरी ट्रेन से टकराने में काफी मददगार हुआ करता था.
कैसे काम करता हैं टोकन एक्सचेंज? (Indian Railway Token Exchange)
बता टोकन एक्सचेंज एक तरह के लोहे का छल्ला होता हैं. स्टेशन मास्टर ट्रेन के ड्राइवर को यह लोहे का छल्ला देता है. स्टेशन मास्टर को टोकन दिया जाना इस बात का प्रमाण होता था कि वह जिस ट्रैक पर गाड़ी चला रहा है वह लाइन पूरी तरह से साफ़ है, उस ट्रैक पर अन्य कोई ट्रेन नहीं हैं. ऐसे में जब गाडी स्टेशन पर पहुँचती थी कि ट्रेन ड्राईवर उस टोकन जमा कर देता था और स्टेशन मास्टर फिर से उस टोकन को अन्य ड्राईवर को दे देता था. ALSO READ:पहले रेलवे की नौकरी, फिर टीम इंडिया में सिलेक्शन, एक नजर देखें धोनी की पूरी जर्नी