टोक्यो में ओलंपिक 2020 प्रगति पर हैं और अब तक मेडल टैली पर चाइना और मेजबान जापान का दबदबा हैं. ओलंपिक के दौरान पोडियम पर खड़े होकर खिलाड़ियों का मुंह से मेडल काटना एक पुरानी परंपरा चलती आ रही हैं. लेकिन टोक्यो में खिलाड़ियों को ऐसा न करने की खास हिदायत दी हैं. फैन्स ये सोच रहे होंगे कि आखिर ऐसा क्यों हैं? चाहिए हम बताते हैं क्या हैं पूरा मामला..
जापान हमेशा से ही अपनी जबरदस्त टेक्नोलॉजी के लिए जाना जाता रहा हैं और मौजूदा ओलंपिक में भी उन्होंने ऐसा ही प्रयोग किया हैं. दरअसल जापान ने मेडल्स को इलेक्ट्रॉनिक कचरे को रिसाइकिल करके तैयार किया हैं. इलेक्ट्रॉनिक कचरे में खराब मोबाइल फोन, लैपटॉप सहित अन्य डिवाइस शामिल हैं. सबसे रोचक बात ये हैं कि जापान के लोगों ने खुद अपने घरों से इलेक्ट्रॉनिक कचरे को दान दिया हैं. जिससे जापान ने ओलिंपिक के लिए लगभग 5000 मेडल बनाए हैं.
We just want to officially confirm that the #Tokyo2020 medals are not edible!
Our 🥇🥈🥉 medals are made from material recycled from electronic devices donated by the Japanese public.
So, you don't have to bite them… but we know you still will 😛 #UnitedByEmotion
— #Tokyo2020 (@Tokyo2020) July 25, 2021
टोक्यो ओलिंपिक कमिटी ने एक अमरीकी ऐथलीट की फोटो शेयर करते हुए लिखा, “हम यह साफ करना चाहते हैं कि टोक्यो ओलिंपिक के मेडल मुंह में नहीं रखे जा सकते. हमारे गोल्ड, सिल्वर और ब्रोंज मेडल इलेक्ट्रॉनिक रिसाइकल डिवाइस द्वारा बनाए गए हैं. यही कारण हैं कि इसके मुंह से काटने की मनाही हैं. हालाँकि हमें मालूम है कि आप फिर भी ऐसा करेंगे.” ट्वीट के साथ एक मजकियाँ स्माइली भी पोस्ट की गई.
खिलाडी क्यों काटते हैं दांत से मेडल?
कई लोग ये सोच रहे होंगे कि आखिर खिलाड़ी ऐसा करते क्यों हैं?. दरअसल मेडल जीतने के बाद एथलीट फोटोग्राफर्स के कहने पर ऐसा करते हैं. ऐसा करने से ये एक यादगार पोज बन जाता हैं. हालाँकि सोचने वाली बात ये हैं कि क्या सिर्फ ऐथलीट अपने राष्ट्रगान की धुन सुनकर गर्व से ऐसा करते हैं या कुछ और कारण भी हैं.
दांत से मेडल काटने का पुराना इतिहास रहा हैं. गोल्ड एक बेहद मुलायम धातु है, ऐसे में इसे काटकर इसकी शुद्धता की जांच भी की जाती हैं. पुराने समय में खिलाड़ियों मेडल को दांत से दबाकर पता लगाते थे कि सोना खरा हैं या इस पर सिर्फ गोल्ड की परत चढ़ाई गई हैं. मजेदार बात ये हैं कि ओलिंपिक खिलाड़ियों के गोल्ड मेडल पर किसी तरह का काटने का निशान नहीं पड़ता है क्योंकि मेडल में सोने की मात्रा बेहद कम होती हैं.