किसी भी देश की सुरक्षा करने वाले जासूस की जिंदगी बहुत ही उतार-चढ़ाव भरी होती है और जासूस की जिंदगी फिल्म में दिखाए जाने वाले किरदारों से बिल्कुल अलग होती है। आज हम अपने आर्टिकल में एक असली जासूस की कहानी का जिक्र करेंगे जिसने अपनी जासूसी से अपने भारत देश की ना केवल अस्मिता बचाई बल्कि उसने अपनी जान भी न्योछावर भी कर दी।
फिल्म राजी में “सहमत” का रोल करने वाली आलिया भट्ट ने अपने अभिनय के द्वारा जासूस की जिंदगी को दर्शकों के सामने रखने का प्रयास किया था। सहमत के अलावा एक और भी शख्स था, जो भारत से पाकिस्तान गया था और जिसे रविंद्र कौशिक के नाम से जाना जाता है।
आज हम अपने आर्टिकल में उस जासूसी कहानी का जिक्र करेंगे तो 23 साल की उम्र में अपने देश की रक्षा के लिए पाकिस्तान में जासूसी करने के लिए गया और वहां की सेना में भी भर्ती हो गया पर कभी अपने वतन देश वापस नहीं लौट पाया। आपको जानकर हैरानी होगी कि सलमान खान की फिल्म एक था टाइगर इसी जासूस की कहानी से प्रेरित थी।
रविंद्र कौशिक का जन्म राजस्थान के श्रीगंगानगर में हुआ था। जहां पर उन्हें बचपन से ही अभिनय करने का खूब शौक था और उसी समय भारत में रॉ एजेंसी की स्थापना हुई थी जो अपने देश की सुरक्षा के लिए अच्छे जासूसों की तलाश कर रही थी।
एक नाटक के दौरान जिसमें भारत और चीन के युद्ध के समय परिस्थिति को दिखाया गया था, जिसे सेना की अधिकारी भी देख रहे थे, उसमें रविंद्र कौशिक ने भारत के जासूस का अभिनय किया जो चीन जाकर अपने देश की सुरक्षा के लिए खूब प्रताड़ना झेल रहा था।
नाटक में रविंद्र कौशिक का रोल देखकर सेना के अधिकारी बहुत खुश हुए और उन्हें रॉ एजेंसी में भर्ती करने का मौका दिया , जिसे रविंद्र कौशिक मना नहीं कर सके और उन्होंने रॉ एजेंसी ज्वाइन कर ली।
अपनी जरूरी पढ़ाई पूरी करने के बाद रविंद्र कौशिक ने रॉ एजेंसी से प्रशिक्षण लिया। जहां पर उनको सभी जरूरी ट्रेनिंग दी गई और खासकर उन्हें मुस्लिम युवक बनने की कि सभी जरूरी चीजें जैसे कि उर्दू और फारसी भाषा भी सिखाई गई।
रविंद्र कौशिक को लड़ाई के साथ ही साथ अन्य आत्मरक्षा स्किल का भी प्रशिक्षण दिया गया। रविंद्र कौशिक के जीवन से संबंधित पूर्व सभी दस्तावेजों को निरस्त कर दिया गया और उनके परिवार से जुड़ी सभी जानकारियों को भी छिपा दिया गया।
1975 में रविंद्र कौशिक को नबी अहमद शाकिर के नाम से पाकिस्तान भेजा गया। वहां जाने से पहले उन्होंने अपने परिवार को आखरी बार अलविदा कहा और वह अपनी सभी पुरानी पहचान मिटा कर पाकिस्तान पहुंच गए और वहां बतौर सिविलियन के तौर पर रहने लगे।
अहमद शाकिर बने रविंद्र कौशिक ने पाकिस्तान जाकर वहां पर लॉ कॉलेज में एडमिशन ले लिया और आपको जानकर हैरानी होगी उस कॉलेज में न केवल पढ़ते हुए केवल पड़ाई की बल्कि वहां पर अपनी अलग पहचान भी बनाई ।
कॉलेज से ग्रेजुएट होने के बाद उन्होंने बड़ी चालाकी से पाकिस्तानी आर्मी में प्रवेश किया और अपने प्रशिक्षण के दम पर वहां पर एक बड़े अधिकारी का तबका भी हासिल किया । यह सब करते-करते रविंद्र कौशिक 23 साल से 28 साल के हो गए थे, जब उनको वहां पाकिस्तान में रहने वाली एक लड़की अमानत से प्यार हो गया और उनसे एक बेटी का भी हुई।
माना जाता है कि पाकिस्तान में अगर कोई चीज उन्होंने सच्चे दिल से की थी तो वह था अमानत से प्यार और उनके प्यार के निशानी उनकी बेटी थी।
इसी के साथ रविंद्र कौशिक ने अपने पढ़ाई और करियर के दम पर सेना में मेजर रैंक भी हासिल कर ली और पाकिस्तान के सभी जासूस जो की भारत में जासूसी कर रहे थे उनकी जानकारी भारत तक पहुंचाई और भारत की सुरक्षा मामलों में अवर्णनीय योगदान दिया।
उनकी तरफ से भेजी जाने वाली जानकारियां भारत देश के लिए बहुमूल्य रत्न से कम नहीं साबित हो रही थी। एक बार तो उनके द्वारा भेजी गई जानकारी की वजह से 20000 सैनिकों की जान बच गई थी ,जिसके कारण तत्कालीन गृहमंत्री ने उनको टाइगर नाम की उपाधि से सम्मानित किया गया था।
खुद आई बी के डायरेक्टर एम के धर कौशिक ने उन्हें भारत देश के लिए राष्ट्रीय धरोहर नामक पद से सम्मानित किया है । उन्होंने अपनी किताब मिशन टू पाकिस्तान में लिखा है कि इंदिरा गांधी भी उन्हें ब्लैक टाइगर के नाम से
संभोधित करती थी।
जब रॉ ने अपने एक अन्य जासूस को भी रविंद्र कौशिक के साथ रहने के लिए भेजा ,तब पाकिस्तानी अधिकारियों को उस जासूस की जानकारी हो गई और पाकिस्तानी अधिकारियों ने उस जासूस को धर दबोचा और उसे टॉर्चर करके रविंद्र कौशिक के बारे में सारी जानकारी हासिल कर ली।
रविंद्र कौशिक का सच का पर्दा उठने के बाद सभी सेना के अधिकारी हैरान रह गए और उन्हें तत्कालीन पाकिस्तानी सेना अधिकारियों द्वारा गिरफ्तार करके सियालकोट जेल में डाल दिया गया जहां पर उनको 2 साल तक लगातार प्रताड़ना सहनी पड़ी उनके जीवन के अंतिम वर्ष बहुत ही बनी है और कष्ट भरे थे। जहां पर ना वह परिवार का प्यार पा सके ना ही अपने देश की जमीन उन को मिल सकी, लेकिन अपने देश की रक्षा अंतिम सांस तक करते रहे हमारा देश रविंद्र कौशिक के योगदान को कभी नहीं भूलेगा।