भारत में आज भी ऐसे कई शाही परिवार हैं जो अपने रॉयल लाइफ-स्टाइल के कारण चर्चा का विषय बने रहते हैं. हालाँकि अज हम बड़ौदा की महारानी राधिकाराजे गायकवाड़ के बारे में कुछ ऐसी बातें जानेगे, जिसके बारे में बेहद कम लोग जानते होंगे.
राधिकाराजे का जन्म वांकानेर के शाही परिवार में हुआ था जबकि उनकी शादी बड़ौदा के महाराजा से हुई थी. ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे को दिए इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि वो इस धारणा को नहीं मानती कि उनका जीवन किसी भी तरह से अन्यों से अलग रहा हैं. महारानी के पिता वांकानेर के महाराजकुमार डॉक्टर रंजीत सिंह जी थे. रंजीत सिंह शाही परिवार के पहले शख्स हैं जो राजघराने की शानो- शौकत छोड़कर आईएएस अधिकारी बने थे.महारानी राधिकाराजे ने एक बार बताया था कि “साल 1984 में, जब भोपाल गैस त्रासदी हुई, उस समय मेरे पिता वहां कमिश्नर के पद पर तैनात थे. मेरी उम्र सिर्फ 6 साल थी. लेकिन मुझे फिर भी ये याद हैं कि मेरे पिताजी ने निडरता से सभी लोगों की मदद की थी. इस घटना के बाद मैंने एक चीज़ सीखी थी कि आप बिना ऊँगली उठाए चीजों को ठीक करके की उम्मीद नहीं कर सकते हैं. ये एक ऐसी चीज थी जो मैंने अपनी पिता सीखी.”इस घटना के बाद उनका परिवार दिल्ली शिफ्ट हो गए थे. महारानी राधिकाराजे अपनी साधारण जिंदगी के बारे में बात करते हुए बताया, “मैं डीटीसी बस में स्कूल जाती थी. जिसके लिए मैं अपनी माँ को श्रेय देती हूँ. मेरी ने हमे आत्मनिर्भर बनाने की सीख दी थी.”
राधिकाराजे ने बताया, हम लोग बेहद साधारण लाइफ जीते थे. यही कारण हैं कि जब हम गर्मियों की छुट्टियों के दौरान अपने गाँव वांकानेर जाते थे तो हमे वहां काफी आदर-सत्कार मिलता था. राधिकाराजे बताती हैं कि उन्हें शुरू से अपने पैरों पर खड़े होने की इच्छा थी. इतिहास में ग्रेजुएशन करने के तुरंत बाद उन्होंने नौकरी ढूंढनी शुरू कर दिया था.राधिकाराजे ने बताया, “महज 20 वर्ष की उम्र में मुझे इंडियन एक्सप्रेस में लेखिका की नौकरी मिल गयी. इस दौरान मैंने अपनी मास्टर डिग्री भी हासिल की. घर से बाहर जाकर नौकरी करने वाली मैं अपने परिवार की पहली महिला थी. अधिकतर चचेरे भाइयों की शादी सिर्फ 21 साल की उम्र में हो गई थी.”
3 साल तक पत्रकार की नौकरी करने के बाद राधिकाराजे के माता-पिता ने उनकी शादी के लिए लड़का ढूंढना शुरू कर दिया. राधिकाराजे ने बताया “बड़ौदा के राजकुमार समरजीत से मिलने से पहले भी मेरी कुछ अन्य पुरुषों से मुलाकत हुई थी. लेकिन समरजीत के विचार अन्यों से बिल्कुल अलग थे. मैंने उन्हें बताया कि मैं आगे पढना चाहती हूँ तो उन्होंने मुझे इसके लिए काफी प्रोत्साहित किया. जिससे मैं काफी खुश थी.”राधिकाराजे का कहना हैं कि शादी के बाद बड़ौदा के लक्ष्मी विलास पैलेस में जाने के बाद उन्हें असली पहचान मिली. महारानी ने बताया, “बड़ौदा महल की दीवारों पर राजा रवि वर्मा की पेंटिग्स लगी थीं. मैंने सोचा कि क्यों ना इन पेंटिंग्स से प्रेरित बुनाई की पुरानी तकनीकों फिर से नया किया जाए. इस कदम से मेरे मन में स्थानीय बुनकरों को सशक्त और मजबूत बनाने का विचार आया. जिसके बाद मैंने अपनी सास के साथ मिलकर इसकी शुरुआत की, जोकि बेहद सफल भी रही थी. लॉकडाउन के दौरान कई लोगों के काम धंधे छुट गए. कोरोना महामारी के दौरान महारानी राधिकाराजे ने ऐसे ही लोगों की मदद की. राधिकाराजे ने कहा, “मैंने और मेरी बहन ने मिलकर कोरोना प्रभावित गांवों का दौरा किया और सोशल मीडिया के जरिये वहां के हालातों से लोगों को रूबरू कराया. इसके बाद मदद के लिए काफी लोग सामने आए. इस पहल के बाद महज कुल महीनों में, हम 700 से भी अधिक परिवारों की सहायता की. अंत में राधिकाराजे ने बताया, “कई बार लोग खुद ये मान लेते हैं की महारानी होने के मतलब ताज पहना होता हैं हालाँकि सच्चाई इस चमक-धमक से काफी दूर है. मैंने पारंपरिक रूढ़ियों को तोड़ा और अपनी खुद की सीमाएं बनाईं. सबसे अहम बात ये हैं कि मैंने वही काम किया, जिसकी लोगों को उम्मीद थी. अब इसी विरासत को मैं अपनी बेटियों को दे रही हूं जिससे वो अपने तरीके से अपनी लाइफ जी सकें और किसी भी चीज का बिल्कुल भी पछतावा ना करें.”साल 2018 में महारानी राधिकाराजे इंडिया टुडे के रॉब रिपोर्ट लिमिटेड एडिशन कार्यक्रम में शामिल हुई थी. इस इवेंट में उन्होंने अपने राजघराने की परंपराओं और विरासत के बारे में काफी बात की थी. उन्होंने गायकवाड़ वंश के इतिहास के बारे में बात करते हुए बताया था कि राजा-महाराजा अधिकतर खूबसूरत चीजों के प्रति आकर्षित रहे हैं.
राधिकाराजे ने इवेंट में बताया कि 19वीं सदी में ही गायकवाड़ों का खजाना कीमती और खूबसूरत चीजों से पूरा भर चुका था. जिसके बाद वे अंतराष्ट्रीय ज्वैलर्स डीलर्स बन गए थे और विश्वभर से कीमती आभूषण खरीदे. साल 1867 में एक ऐसा डायमंड खरीदा गया जो कोहिनूर से भी बड़ा था.